एक्जिमा:
एक प्रकार का चर्म रोग है एक्जिमा।
रोग की शुरुआत में तेज खुजली होती है।
चिकित्सा के अभाव में तेजी से शरीर में फैलता है। एक्जिमा एक प्रकार का चर्म रोग है। त्वचा के उत्तेजक, दीर्घकालीन विकार को एक्जिमा के नाम से जाना जाता है। इस रोग में त्वचा शुष्क हो जाती है और बार-बार खुजली करने का मन करता है क्योंकि त्वचा की ऊपरी सतह पर नमी की कमी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा को कोई सुरक्षा नहीं रहती, और जीवाणुओं और कोशाणुओं के लिए हमला करने और त्वचा के भीतर घुसने के लिए आसान हो जाता है। एक्जिमा के गंभीर मामलों में त्वचा के ग्रसित जगहों से में पस और रक्त का स्राव भी होने लगता है। यह रोग डर्माटाईटिस के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह रोग खून की खराबी के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेजी से शरीर में फैलता है। एक्जिमा का रोग अपने रोगियों को उम्र और लिंग के आधार पर नहीं चुनता। एक्जिमा के रोग से ग्रस्त रोगी अन्य विकारों के भी शिकार होते हैं। यह किसी भी उम्र के पुरुष या महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। लेकिन कुछ आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाकर इस समस्या के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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घरेलू उपचार:
खदिरारिष्ट
२० मिलीलीटर खदिरारिष्ट को २० मिलीलीटर पानी में मिलाकर खाना खाने के बाद दिन में दो बार लेने से फायदा होता है।
गुदुच्याड़ी तेल एक औषधियुक्त तेल जिसे ग्रसित जगह पर लगाने से लाभ मिलता है। पञ्चनिम्बडी चूर्ण खाना खाने के बाद आधे से एक चमच पानी के साथ लेने से भी लाभ होता है। साफी रक्त शुद्धी की एक बहुत ही प्रचलित औषधि, जिसके एक दो चम्मच खाली पेट पर लेने से एक्ज़िमा काफी हद तक ठीक हो जाता है। शुद्ध गुग्गूल
आयुर्वेद की बहुत ही प्रचलित जड़ी बूटी, गुग्गूल में शुद्धि और तरोताजा करने के लिए अत्यधिक ओजस्वी शक्तियों का समावेश होता है।
चन्दन एक चम्मच कपूर के साथ एक चम्मच चन्दन की लई मिलाकर एक्जिमा से ग्रसित जगह पर लगाने से भी बहुत फायदा होता है।
नीम नीम के कोमल पत्तों का रस निकालकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिला लें। इसे प्रतिदिन सुबह पीने से खून की खराबी दूर होकर एक्जिमा ठीक होने लगता है। हरड़ हरड़ को गौमूत्र में पीसकर लेप बना लें। यह लेप प्रतिदिन दो से तीन बार एक्जिमा पर लगाने से लाभ होता है।
क्या करें क्या ना करें: डिटरजेंट (कपडे धोने का पाउडर) को बिलकुल भी ना छुएं, पर अगर मजबूरी से छूना भी पड़े तो सूती दस्तानों का प्रयोग करें।
एक्जिमा से ग्रसित जगह पर तंग कपडे ना पहनें।
सिंथेटिक कपड़ों का भी बिलकुल प्रयोग ना करे, क्योंकि इससे पसीने के निष्काशन में कठिनाई होती है।
तरबूज जैसे फलों का नियमित रूप से सेवन करें।
गाजर और पालक के रस का मिश्रण पीने से भी एक्जिमा के ठीक होने में लाभ मिलता है।
पानी का भरपूर मात्रा में सेवन करें और चाहें तो संतरे का रस भी पी सकते हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि टमाटर का रस भी एक्जिमा को चंद दिनों में ठीक करने में सहायक सिद्ध होता है।
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सोरायसिस का इलाज:
यह रोग आनु्वंशिक भी हो सकता है।
पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है।
यह बीमारी कभी भी और किसी को भी हो सकती है।
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सोरायसिस का इलाज:
सोरायसिस चमड़ी पर होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा पर एक मोटी परत जम जाती है। अलग शब्दों में कहें तो चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर सोराइसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पांव अथवा हाथ की हथेलियों, पांव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। हालांकि यह रोग केवल 1-2 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है।
यह रोग आनु्वंशिक भी हो सकता है। आनु्वंशिकता के अलावा इसके होने के लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है। यह बीमारी कभी भी और किसी को भी हो सकती है। कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ कर लोग निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन यह बीमारी दोबारा हो सकती है। सर्दियों के मौसम में यह बीमारी ज्यादा होती है।
आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस एक गैर-संक्रामक त्वचा रोग है। सोरायसिस में शरीर में वात व पित्त की अधिकता के कारण त्वचा के टिश्यूज में विषैले तत्व फैल जाते हैं, जो कालांतर में सोरायसिस की समस्या पैदा करते हैं। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. प्रताप चौहान द्वारा बताए गए सोरायसिस के कारण, लक्षण और उपचार की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं। अगर आप इस बीमारी से परेशान हैं तो आपको इस लेख से समाधान मिल सकता है।
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जब दिखे ऐसे लक्षण: सोरायसिस के कारण त्वचा में जलन, खुजली, त्वचा का लाल पडऩा और सूजन आना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
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सोरायसिस होने की वजह:
सोरायसिस होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है।
यदि माता-पिता दोनों इससे ग्रस्त हैं, तो बच्चे को भी सोरायसिस होने की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
इसके अलावा प्राकृतिक वेगों (मल व पेशाब) को कई बार रोकना भी कालांतर में इस रोग का कारण बन सकता है।
इसी प्रकार मसालेदार, तैलीय, चिकनाईयुक्त व जंक फूड्स खाने, चाय काफी और शराब का सेवन व धूम्रपान भी सोरायसिस के कारण बन सकते हैं।
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सोरायसिस का उपचार:
स्व-चिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन) से दूर रहें। अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद ही उपचार शुरू करें।
पानी में साबुत अखरोट उबालकर और इसे हल्का ठंडाकर त्वचा के प्रभावित अंगों पर लगाएं। प्रभावित अंग को ताजे केले के पत्ते से ढक दें।
15 से 20 तिल के दाने एक गिलास पानी में भिगोकर पूरी रात रखें। सुबह खाली पेट इनका सेवन करें।
पांच से छह महीने तक प्रात: 1 से 2 कप करेले का रस पिएं। यदि यह रस अत्यधिक कड़वा लगे, तो एक बड़ी चम्मच नींबू का रस इसमें डाल सकते हैं।
खीरे का रस, गुलाब जल व नींबू के रस को समान मात्रा में मिलाएं। त्वचा को धोने के बाद इसे रातभर के लिए लगाएं।
आधा चम्मच हल्दी चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार लें।
घृतकुमारी का ताजा गूदा त्वचा पर लगाया जा सकता है या इस गूदे का प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार सेवन करें।
यदि आपको उपर्युक्त उपचार विधियों से राहत नहीं मिलती है, तो आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से सर्वप्रथम रक्त व टिश्यूज की शुद्धि की जाती है। फिर यह पद्धति पाचन तंत्र को मजबूत कर त्वचा के टिश्यूज को सशक्त करती है।
सुबह टहलें और नियमित रूप से पेट साफ रखें।
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